फाइटर पायलट की ‘विफलता’ और 7 सबक: डॉ. कलाम कैसे बने Missile मैन
बचपन और प्रारंभिक शिक्षा: संघर्ष से शिखर तक 🌅
डॉ. अवुल पकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक साधारण तमिल मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पिता, जैनुलाब्दीन, एक नाव मालिक और स्थानीय मस्जिद के इमाम थे। कलाम के परिवार को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा।
अपने परिवार की मदद करने के लिए, युवा कलाम ने स्कूल के बाद अखबार बेचना शुरू कर दिया था। रामेश्वरम के Schwartz Higher Secondary School से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के दौरान ही, कलाम ने गणित और विज्ञान के प्रति एक अटूट जुनून विकसित किया, जिसने उनके भविष्य की नींव रखी।
कॉलेज और इंजीनियरिंग की पढ़ाई (Higher Education) 🎓
Dr apj abdul Kalam 15 oct
स्कूल की पढ़ाई के बाद, कलाम ने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से भौतिक विज्ञान (Physics) में स्नातक (Graduation) की उपाधि प्राप्त की। हालांकि, उनका सच्चा सपना एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग (Aeronautical Engineering) में था, जिसके लिए वे मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) चले गए। MIT में उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें अंतरिक्ष और विमानन के रहस्यों को समझने में मदद की।
फाइटर पायलट बनने का सपना और विफलता 💔
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भारतीय वायु सेना (IAF) में फाइटर पायलट बनने के लिए आवेदन किया। उन्होंने परीक्षा पास की, लेकिन अंतिम मेरिट सूची में उन्हें नौवां स्थान मिला, जबकि केवल आठ पदों की ही आवश्यकता थी। यह उनके जीवन की एक बड़ी विफलता थी, जिसने उन्हें निराश किया।
हालांकि, यह विफलता उनके लिए एक छिपा हुआ आशीर्वाद साबित हुई। उन्होंने इस निराशा को पीछे छोड़ दिया और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट में एक वैज्ञानिक के रूप में अपना करियर शुरू किया।
वैज्ञानिक करियर की शुरुआत: DRDO और ISRO 🛰️
DRDO में प्रारंभिक कार्य (1958)
कलाम ने DRDO में एक छोटे होवरक्राफ्ट के डिजाइन पर काम किया। हालाँकि, उनका मन अभी भी एयरोस्पेस के बड़े लक्ष्यों में रमा हुआ था।
ISRO में ऐतिहासिक योगदान (1969-1982)
1969 में, डॉ. कलाम ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में कदम रखा, जो उनके करियर का निर्णायक मोड़ साबित हुआ। यहाँ उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SLV-III) परियोजना के परियोजना निदेशक (Project Director) के रूप में कार्य किया।
SLV-III का सफल प्रक्षेपण भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक ऐतिहासिक घटना थी। जुलाई 1980 में, SLV-III ने रोहिणी उपग्रह को सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया, जिससे भारत अंतरिक्ष क्लब (Space Club) का एक विशिष्ट सदस्य बन गया। यह डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की असाधारण नेतृत्व क्षमता और वैज्ञानिक दृष्टि का प्रमाण था।
DRDO में वापसी और ‘मिसाइल मैन‘ की उपाधि 🚀
1982 में, डॉ. कलाम DRDO में वापस लौट आए और एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) का नेतृत्व किया। उनके मार्गदर्शन में, भारत ने स्वदेशी मिसाइलों जैसे पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल और नाग का सफल विकास किया। इन्हीं अभूतपूर्व योगदानों के कारण उन्हें “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” के नाम से जाना जाने लगा।
परमाणु परीक्षण और राष्ट्रपति पद 🇮🇳
1992 से 1999 तक, उन्होंने रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और DRDO सचिव के रूप में कार्य किया। इसी दौरान, 1998 में हुए पोखरण-II परमाणु परीक्षणों में उनकी अहम भूमिका थी, जिसने भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया।
2002 में, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और 2007 तक इस पद पर रहे। अपनी सादगी और आम लोगों से जुड़ाव के कारण उन्हें “पीपुल्स प्रेसिडेंट” (People’s President) के नाम से भी जाना जाता है।
सर्वोच्च सम्मान: भारत रत्न ⭐
राष्ट्र के प्रति उनकी अद्वितीय वैज्ञानिक और तकनीकी सेवाओं को मान्यता देते हुए, डॉ. कलाम को भारत के तीन सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया:
पद्म भूषण (1981)
पद्म विभूषण (1990)
भारत रत्न (1997) – यह भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है, जो उनकी राष्ट्र सेवा के शिखर को दर्शाता है।
27 जुलाई 2015 को शिलांग में एक व्याख्यान देते समय उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम केवल एक वैज्ञानिक या राष्ट्रपति नहीं थे; वह करोड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनका प्रसिद्ध कथन, “सपने वह नहीं जो आप नींद में देखते हैं, बल्कि वह हैं जो आपको सोने नहीं देते,” आज भी हर भारतीय को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है।
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